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बदला – अंजू लता

प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता दोनों में है भेद-
एक बहाती रक्त है, दूजी श्रम का स्वेद,
धोखा देकर वार करे, शत्रु नीच वह होय-
निर्दोषों को मारकर नहीं जतावे खेद.
बदला लेना ठीक है ,विकृत-मन दुश्मन से-
ख़त्म करें नस्लें सभी, इनकी हर आंगन से,
दिल में इनके खोट है, नफ़रत की भरमार-
करें नेस्तनाबूद इन्हें, अपने सिरमौर वतन से.
नफ़रत वाली सोच उठाती, जब-जब सर अपना।
स्वजनों को ही दुश्मन माने, घर फूँके अपना।।
‘बदला’लेने की तलब, मन में काँटे बोए।
अनबन, हिंसा, ईर्ष्या बन जाती छलना ।।
बदला लेने का जतन, करते हिंसक लोग।
अनाचार करते फिरें, द्वेष का पालें रोग।।
दिल को कर दें विकट-विषैला, पल-पल काँपें गात-
यह त्याज्य दुर्भावना त्यागो, बन जाए बात।।
– डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली