मनोरंजन

ग़ज़ल – कमल धमीजा

 

आग नफ़रत की लगी है लोग सब जलते रहे‌।

जल रहा था आशिया हम हाथ ही मलते रहे।।

 

हाल-ए-दिल किस तरह अपना सुनाएं आपको।

ऑंख में ऑंसू भरे हैं और हम गलते रहे।।

 

डूब जाएगा रवि भी यूं कभी सोचा न था।

दर्द ऑंसू ज़ख्म मेरे प्यार को छलते रहे।।

 

साथ मेरे जो खड़ा था उम्र भर का साथ था।

इस गुलों के शहर में तन्हा मगर चलते रहे।।

 

ये सियासत का तमाशा “कमल” यूं ही चल रहा।

याद को उसकी समेटे शाम सा ढलते रहे।।

– कमल धमीजा, लुधियाना, पंजाब

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