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ग़ज़ल – मधु शुक्ला

हर मुश्किल से लड़ता है वो ,
थककर भी हँसता है वो।
सुख-दुख देने वाला ईश्वर,
रक्षक सबका पढ़ता है वो।
जीवन पथ पर बढ़ते रहना,
निज कर्तव्य समझता है वो।
‘मधु’ चंचल जीवन धारा पर ,
रफ्ता – रफ्ता बहता है वो।
साहस, धीरज, श्रम से नाता,
हरदम जोड़े रखता है वो।
— मधु शुक्ला,सतना, मध्यप्रदेश