मनोरंजन

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

 

साथ बेटे के निभाना भी नही चाहते हम,

पास रहकर सब लुटाना भी नही चाहते हम।

 

जी रहे हैं आज घमंड मे ये बच्चे इतना..

क्या करे सर को झुकाना भी नही चाहते हम।

 

हम कमा ले आज अपनी मेहनत से इतना,

भीख मे माँगा खजाना भी नही चाहते हम।

 

चार दिन की जिंदगी है भूल जा सब शिकवे,

है वो अपने दिल दुखाना भी नही चाहते हम।

 

चाहते वो आज करना अपनी मनमानी भी,

जिंदगी अपनी गँवाना भी नही चाहते हम।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़

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