मनोरंजन

ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

पुस्तकों से प्रश्न करती कह रहीं अलमारियाँ ।
रुग्ण क्यों दिखने लगी हो क्या तुम्हें बीमारियाँ ।

पाठकों का प्रेम क्यों घटने लगा है इन दिनों ,
दोष किसका है कहो कैसे बढ़ीं दुश्वारियाँ ।

रो रहीं कविता ,कहानी क्यों तुम्हारी कोख में ,
फेसबुक की चाल है या वक्त की लाचारियाँ ।

माँग के अनुरूप ही ढलना तुम्हें होगा सखी ,
ई-किताबों में विलय की अब करो तैयारियाँ ।

हम तुम्हारे बिन कबाड़ी भाव में बिकने चलीं ,
लुप्त होती दिख रहीं साहित्य की किलकारियाँ ।

आ गया इंस्टा तुम्हारे ज़ख्म पर मलने नमक ,
और ट्विटर कर रहा है नित नई मक्कारियाँ ।

कौन है इसका रचियता दोष किसके सिर मढ़ें ,
पुस्तकों के साथ “हलधर” क्यों हुई अय्यारियाँ ।
(विश्व पुस्तक दिवस पर)
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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