मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

धूप ये वैशाख की कहती कृषक के कान में,
अब फसल को भेज दो अतिशीघ्र तुम खलिहान में।

चल रहे हैं आजकल मौसम मनुज की राह पर,
व्यस्त रहते हर घड़ी निज शक्ति के गुणगान में।

मूल्य घटता जा रहा है जिस तरह विश्वास का,
हो रही मुश्किल बहुत दुश्मन, सखा पहचान में।

यदि सजगता हो सखा श्रम साधना होती सफल,
वृद्धि होती है इसी से व्यक्ति के सम्मान में।

द्वेष,छल के साथ जग में पल रहा है प्रेम भी,
‘मधु’ हमें जो प्रिय रखें उसको सदा संज्ञान में।
— मधु शुक्ला,सतना, मध्यप्रदेश

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