मनोरंजन
गीतिका – मधु शुक्ला

वाणी पर अंकुश रखने की , कला जिन्हें आती,
अपनेपन की डोरी उनसे , छूट नहीं पाती।
सोच समझ कर बोला करते, जिनको रिश्ते प्यारे,
मानव जीवन को मर्यादित, भाषा महकाती।
अपशब्दों से प्रेम करें जो , तन्हाई झेलें ,
सद्भावों की उनके द्वारे , छाँव नहीं जाती।
घाव बात का कभी न भरता , रिसता रहता है,
आह अग्नि पीड़ा दायक को , निश्चित झुलसाती।
मधुर बोल की महिमा जग में , गाई संतों ने,
संदेशा सहयोग भाव का , मृदु वाणी लाती।
— मधु शुक्ला , सतना, मध्यप्रदेश