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गीतिका सृजन – मधु शुक्ला

जगत में एक सी सबकी नहीं पहचान होती है,
रुपहली आंग्ल पर हिन्दी सदा कुर्बान होती है।

सुखद जीवन सदा श्रम से कुशल कर्ता कमाते पर,
न मजदूरी हँसे बस सैलरी मुस्कान होती है।

श्रमिक संसार में सब हैं न कोई श्रम बिना खाता,
कमाई कम सहे पीड़ा अधिक अभिमान होती है।

समय श्रम बेचकर परिवार का पालन हुआ करता ,
उपार्जन नीति ही संज्ञान सुख की खान होती है।

मिले उपयुक्त मजदूरी मिटे दुख पर नहीं संभव ,
मनुज सम्मान को दहना धनिक की शान होती है।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

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