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नया मुल्क बलूचिस्तान : कितना कठिन कितना आसान – मुकेश कबीर

utkarshexpress.com – आखिरकार पाकिस्तान के प्रांत बलूचिस्तान ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी और अब उसने भारत सहित यूएनओ से स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में मान्यता देने की गुहार भी लगाई है। बलूचिस्तान बीते कई वर्षों से पाकिस्तान के जुल्म और शोषण का विरोध करते हुए आजादी की लड़ाई लड़ रहा है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बलूचिस्तान का एक अलग देश के रूप में मान्यता प्राप्त करना इतना आसान नहीं लगता जितनी आसानी से बांग्लादेश बन गया था। असल में बांग्लादेश का उदाहरण देखकर ही बलूचिस्तान सबसे ज्यादा उम्मीदें भारत से रखता है लेकिन बांग्लादेश और बलूचिस्तान में बहुत फर्क है। बांग्लादेश के अलग देश बनने में पाकिस्तान के अलावा किसी अन्य देश को आपत्ति नहीं थी जबकि बलूचिस्तान के मामले में सबका समर्थन मिलना आसान नहीं है । आज यदि भारत मान्यता दे भी दे तो भी बलूचिस्तान अलग राष्ट्र नहीं बन पाएगा । किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए संयुक्त राष्ट्र में मान्यता मिलना जरूरी है। आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देश एकतरफा बलूचिस्तान के साथ तो दिखाई नहीं दे रहे हैं। खासकर चीन और अमेरिका के हित पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं इसलिए चीन तो बलूचिस्तान को मान्यता देना ही नहीं चाहता और अमेरिका दुविधा में है। अमेरिका ईरान में तो बलूचिस्तान का समर्थन करता है लेकिन इधर पाकिस्तान की उपेक्षा नहीं करना चाहता। इसलिए अमेरिका का रुख पूरी तरह साफ नहीं है। अलग देश की मान्यता के लिए सुरक्षा परिषद के सदस्यों का दो तिहाई बहुमत मिलना जरूरी है ,अभी सिर्फ रूस और फ्रांस से ही बलूचिस्तान समर्थन की उम्मीद कर सकता है । इस स्थिति में चीन बलूचिस्तान के खिलाफ वीटो करेगा यह साफ दिखाई देता है। चीन को अपने इकोनॉमिक कोरिडोर के लिए बलूचिस्तान की बहुत जरूरत है और अभी पाकिस्तान की सहमति और सहयोग से ही चीन की पहुंच बलूचिस्तान तक बनी हुई है। बलूचिस्तान के पाकिस्तान से अलग होते ही उसका इकोनॉमिक कोरिडोर का सपना हमेशा के लिए टूट जाएगा और तब चीन बलूचिस्तान को एक और ताइवान नहीं बना सकेगा। चीन के वीटो के चलते ब्रिटेन और अमेरिका पर बलूचिस्तान की निर्भरता बढ़ेगी लेकिन यह दोनों देश अभी तक अनिर्णय की स्थिति में दिखाई देते हैं। इसका मतलब है कि फिलहाल पांच में से तीन देश अभी बलूचिस्तान के पक्ष में नहीं लगते इसलिए मान्यता का मामला टल सकता है। अंतर्राष्ट्रीय नियमानुसार बलूचिस्तान को स्वायत्तता की गारंटी मिलने की संभावना तो है क्योंकि जब कोई देश अपनी आजादी की घोषणा करता है तो उसको स्वायत्तता की गारंटी मिल जाती है। जैसे कोसोवो को मिली हुईं है ,कोसोवो को सर्बिया से अलग हुए काफी समय हो चुका है फिर भी कोसोवो को एक स्वतंत्र देश की मान्यता नहीं मिल सकी लेकिन उसे स्वायत्तता की गारंटी मिल चुकी है इसलिए सर्बिया उसके ऊपर हमला नहीं कर सकता,उसको जबर्दस्ती फिर से हासिल नहीं कर सकता लेकिन बलूचिस्तान इस मामले में भी बदकिस्मत है। पाकिस्तान और सर्बिया में बहुत फर्क है । पाकिस्तान अपने स्वार्थ के लिए नियमों को दरकिनार करने की बीमारी से पीड़ित है और दूसरा पाकिस्तान की बदसलूकी को अमेरिका भी पर्दे के पीछे से सपोर्ट कर देता है और चीन तो प्रत्यक्ष सपोर्ट करता ही है इसलिए पाकिस्तान आसानी से बलूचिस्तान को छोड़ने वाला नहीं है। संभावना तो यह है कि अब पाकिस्तान बलूचों से बदला लेने की पूरी कोशिश करेगा,इसलिए अब बलूचों पर अत्याचार भी बढ़ सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बलूच विद्रोह ने पाकिस्तान को दोहरी मुश्किल में डाला था । बलूच धरती पाकिस्तान की सबसे बड़ी ताकत है खासकर आर्थिक नजरिए से । बलूचिस्तान की खदानें पाकिस्तान की रीढ़ हैं,बलूचिस्तान अलग होते ही पाकिस्तान बहुत ज्यादा कमजोर हो जाएगा। बांग्लादेश बनने से पाकिस्तान इतना कमजोर नहीं हुआ होगा जितना बलूचिस्तान के अलग होने से होगा। इसलिए पाकिस्तान किसी भी हालत में बलूचिस्तान को हाथ से नहीं जाने देगा। यही कारण है कि पाक सेना के रावलपिंडी हेडक्वार्टर में बलूच आंदोलन को दबाने की तैयारी भी होने लगी है। पाकिस्तान के स्वभाव और वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है कि इस बार बलूचों पर जरूरत से ज्यादा अत्याचार होने वाला है।पाकिस्तान अब हमेशा के लिए बलूचियों को कुचलना चाहेगा, वह पहले भी ऐसा करता रहा है। सत्तर के दशक में भी पांच हजार बलूच विद्रोहियों को पाकिस्तान ने मार दिया था। इस बार पाकिस्तान ज्यादा घातक हमला करेगा। उस स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी। कम से कम स्वायत्तता की गारंटी के नियम को बचाने के लिए। यदि संयुक्त राष्ट्र बलूचिस्तान को स्वायत्त देश बनाकर भी रख सके तो यह बलूचियों की बहुत बड़ी जीत होगी । फिर आज नहीं तो कल बलूचिस्तान बन ही जाएगा। जहां तक भारत का सवाल है तो बलूचिस्तान सबसे पहले भारत से मान्यता चाहता है। बलूचिस्तान भारत को अपनी अंतराष्ट्रीय आवाज मानता है और जैसे भारत ने बांग्लादेश बनाया वैसी ही अपेक्षा अपने लिए करता है। लेकिन वर्तमान में भारत के लिए बांग्लादेश की तरह बलूचिस्तान बनाना बहुत मुश्किल होगा। पहले तो भारत की दखल देने की नीति भंग होगी और दूसरी ओर कश्मीर पर भी भारत का पक्ष कमजोर होगा। आज भारत का फोकस बलूचिस्तान नहीं पीओके पर है इसलिए भी भारत बलूचिस्तान का उतना खुलकर सपोर्ट नहीं करेगा जितना बांग्लादेश का किया था। जहां तक मान्यता देने का सवाल है तो भारत को जितना जल्दी हो सके बलूचिस्तान को मान्यता देने पर विचार करना चाहिए क्योंकि बलूचिस्तान का अलग होना भारत के लिए सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा। बलूचिस्तान में चीन का वर्चस्व बढ़ते ही भारत के लिए ज्यादा मुश्किलें खड़ी होंगी।
इन परिस्थितियों में अब देखना यही है कि भारत मान्यता देता है या नहीं। वैसे भारत अभी आधा अधूरा कदम नहीं उठाना चाहेगा क्योंकि केवल भारत के मान्यता देने से ही बलूचिस्तान नहीं बनेगा उसको संयुक्त राष्ट्र से भी मान्यता लेना होगी। यही कारण है कि भारत गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद ही बलूचिस्तान को मान्यता देगा । बलूचिस्तान फिर भी यही चाहता है कि भारत उसे सबसे पहले मान्यता दे क्योंकि वह भारत की अंतर्राष्ट्रीय ताकत जानता है और उसे काफी सालों से भारत का समर्थन मिलता भी रहा है। साथ ही बलूचिस्तान अपने देश में हिंदुओं को भी बहुत सुरक्षा प्रदान करता है इसलिए उसे भारत की सरकार से ज्यादा उम्मीदें भी हैं। वैसे दक्षिण एशिया की शांति के लिए बलूचिस्तान का निर्माण बहुत जरूरी है इसलिए इसका नए देश के रूप स्वागत किया जाना चाहिए। (विभूति फीचर्स)

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