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बड़े अच्छे लगते हैं – सविता सिंह

अच्छा लगता है तुम्हारा हक जताना,

बात-बात पर चाहते हो यह बताना,

कहीं जाते वक्त यूँ मुड़ मुड़ कर देखना,

किवाड़ खोलने में हो देरी तो झल्लाना।

अच्छा लगता है मुझे…..

बहुत फिक्र तुम करते रहते हो हमारी,

ध्यान रखो अपना हो न कोई बीमारी,

तुमको कुछ हो गया तो भला क्या करूंगा ?

दवा का बिल दिखाना आदत तुम्हारी।

पर अच्छा लगता है मुझे…..

कुछ भी करने से तुम कभी नहीं रोकते,

मैं क्या हूँ क्या करूँ कभी नहीं टोकते,

औरतों की तारीफ करते नहीं थकते,

मुझे कोई सराहे वह तुमको अखरते।

पर अच्छा लगता है मुझे…..

मेरी हर गलती पर एक ही बात कहना,

अपने सास ससुर की हमेशा कदर करना,

घर वालों की नहीं है परवाह तुम्हें,

ये कह मायके का फिर पता बताना

अच्छा लगता है मुझे……

न करो खोखली फिकर न ही मेरी चिंता,

मैं उड़ना चाहूँ बन कर बस एक परिंदा,

मुझे अब एक ऐसा आसमान चाहिए

चेहरे पर अदद एक मुस्कान चाहिए,

मेरी खुद की एक पहचान चाहिए।

– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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