मिशन सिंदूर – क्षमा कौशिक

वो जिसने पूछकर जाति चला दी शीश पर गोली।
मिटा डाले सभी सुख चैन खेली खून की होली।। ।।
अभी ही तो भरा सिंदूर पति ने माँग में उसकी।
दरिंदों ने मिटा दी एक पल में जिंदगी उसकी।।
करुण क्रंदन मचा था माँगती थी न्याय माँ बेटी।
कहें सब क्यों प्रशासन मौन बैठा है अभी तक भी।।
मगर वह चुप नहीं था टोह में बैठा शिकारी था।
सिखाऊँगा सबक उनको यही मोदी का वादा था।।
मिनट पच्चीस में ही खोद डाली कब्र दुश्मन की।
जो अब तक दे रहे थे मारने की जान से धमकी।।
लिया प्रतिशोध ऐसा रूह भी काँपेगी दुश्मन की।
नहीं सदियों भुला पायेगी मंजर नस्ल भी उनकी।।
किसी भ्रम में न रहना छोड़ देगा अब तुम्हेँ भारत।
किसी भी हाल मिट्टी में मिला देगा तुम्हें भारत।।
नमन करते हैं हम सब मातृभूमि के सपूतों को।
जिन्होंने है बढ़ाया मान मारा उन कपूतों को।।
मिशन सिंदूर ने अब ठान ली कि अब न छोड़ेंगे।
अमन के दुश्मनो को कब्र से भी खोज हम लेंगे।।
चटाई धूल कितनी बार है इतिहास को उलटो।।
अभी भी वक्त भी वक्त है संभलो कायरों सोच को पलटो।
नहीं तो एक दिन नक्शे पे तेरा नाम न होगा।
पालता है जिन्हें उनका नहीं नामों निशां होगा।।
न हमने इंच भर धरती किसी की आज तक घेरी।
जो रखेगा नज़र भारत पे होगी खैर न तेरी।।
विश्व बंधुत्व का नारा दिया हमने सदा से ही।
जियो और जीने दो इस राह चलते हैं सदा हम भी।।
मगर छेड़ा तो देंगे छोड़ यह तू सोच मत लेना।
तेरे घर घुस के ठोकेंगे तभी ये जान तू लेना।।
– क्षमा कौशिक, देहरादून, उत्तराखंड