मनोरंजन

हासिल – ज्योत्सना जोशी

मोह की चिर वेदना का

गीत अधरों पर सजाएं

अनकही किसी बात पर

वो मौन मंद सा मुस्कुराए

भाव ठहरा रहा उर में

यह पूर्ण पूरित सकल है

शब्दों के आरोह अवरोह में

व्यंजनाएं पिरोई जाए।

बहलाने के स्वयं को

अनेकों बहाने खोजें जाएं

बसंत का आलिंगन करके

पतझड़ को कोसा जाए

बादलों की ओट से रश्मि

छनकर गिर पड़ेगी

क्षण क्षण की प्रतिक्षा में

दृष्टि अम्बर को ताकें जाए।

निशा के आगोश में सतत

मयंक अपनी छाया तलाशें

ज़िद हठीली लिए फिरता

स्व से स्वयं को सम्हाले

मान भी लो लौ रागिनी की

मात्र आंखों से नहीं दिखेगी

मर्म स्निग्धा से समझी जाए।

आंच अहसासों की निरंतर

वक्त की उंगलियां थामें

जीत हार के हर प्रश्न से परे

स्वयं को खो देने की आकुलता

हासिल उस ठहरे छोर का

दो किनारों सा संग चलता जाए।

– ज्योत्सना जोशी, देहरादून

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button