मनोरंजन

देह की दीवारें और आत्मा की पुकार – प्रियंका सौरभ

 

मैं स्त्री हूँ – देह से परे, मन की मौन पुकार,

नमन की ज्वाला, समर्पण का उजास,

किंतु देखो, कैसी हो गई हूँ मैं,

चमकती स्क्रीन पर बिंधी एक देह भर।

 

जहाँ कभी चूड़ियों की खनक थी,

आज वहाँ बस लाइक्स का शोर है,

जहाँ कभी पायल की झंकार थी,

वहाँ अब फॉलोअर्स की भीड़ है।

 

मुझे कद नापने थे विचारों के,

मुझे परवाज़ देनी थी आत्मा को,

पर मैं उलझी हूँ उंगलियों के इशारों में,

कैमरे की ज़द में, कमेंट्स की भीख में।

 

मेरे कपड़ों की लंबाई पर होती है चर्चा,

मेरे हंसने-रोने पर लगते हैं दाम,

मैं औरत हूँ – मन का विस्तार हूँ,

फिर क्यों बाँध दी गई हूँ बदन की जंजीर में?

 

सोचो, क्या मैं सच में सशक्त हूँ?

क्या यही मेरी परिभाषा है,

या फिर मैं वही चुप्पी हूँ,

जिसे सदियों से अनसुना किया गया है?

 

आओ, तोड़ें इस भ्रम की दीवारें,

लाइक्स की भूख से मुक्त हो जाएं,

खुद को फिर से पहचानें,

बनें वो दीपशिखा, जो खुद को जलाकर रौशनी बिखेरती है।

-प्रियंका सौरभ, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा

(सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045

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