मनोरंजन

नव भोर सुहाना – अनिरुद्ध कुमार

 

बहुत कठिन है जीवन जीना,

घुट घुट कर आँसू को पीना।

जीवन पथ लगता पथरीला,

जिधर निहारें मरना जीना।

 

हर कोई अपनें धुन गाये,

व्याकुलता में तानें सीना।

संकट मोचन नजर न आये,

बहुते मुस्किल राह कहीं ना।

 

भूख गरीबी बांह पसारे,

भ्रष्टाचार लगे है गहना।

कैसे कोई करे भरोसा,

दुश्वार हो गया है जीना।

 

हर कोई निज बीन बजाये,

मानव भूला कष्ट उठाना।

काले बादल घोर अँधेरा,

सीखा सबने बात बनाना।

 

कोई तो अब राह दिखाना,

आगे बढ़के दीप जलाना।

जागा है जागेगा मानव,

चमकेगा नव भोर सुहाना।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड

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